श्री कृष्ण के दिव्य कर्तव्यों से सुसज्जित भव्य झांकी बनी आकर्षण का केंद्र

भिलाई। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा सेक्टर 7 स्थित पीस ऑडिटोरियम में श्री कृष्ण के दिव्य कर्तव्यों को दर्शाती बहते झरनों और नदियों के मध्य लाइट एंड साउंड द्वारा सुसज्जित भव्य जीवंत झांकी सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी प्राची दीदी एवं पूर्व मंत्री बदरुद्दीन कुरैशी द्वारा दीप प्रज्वलन कर झांकी प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया। यह झांकी सर्व के निशुल्क दर्शनार्थ 17 अगस्त 2025, रविवार तक प्रतिदिन संध्या 5:30 से रात्रि 9:30 बजे तक रहेगी। जिसमें करावनहार की शक्ति,कर्तव्य एवं विनम्रता का दिव्य दर्शन स्पष्ट, सरल एवं सहज रूप से जीवन में सकारात्मक उच्च धारणाओं को अपनाने की प्रेरणा देता है।
झांकी के प्रवेश द्वार में ही श्रीकृष्ण के बाल रूप को माखन से भरे पात्रों के मध्य कान्हा जी का नयनाभिराम दृश्य सभी को उमंग उत्साह खुशी आनंद से भरपूर जीवन जीने का अनुभव करता है जो कि संदेश देता है कि जब हम शुद्ध मन व विनम्रता से भरपूर रहते हैं तो हमारे छोटे-छोटे कर्म भी यादगार बन जाते हैं। झांकी के मध्य में बने हंस व पर्वत से बहते झरने एवं कलकल नदी में राधे कृष्ण द्वारा नौका विहार निश्चिंत जीवन को दर्शाता है।
संस्कार मिलन की महारास मधुर व्यवहार
श्री कृष्ण का गोप, गोपिकाओं के साथ संस्कार मिलन की महारास अर्थात कोई कैसी भी संस्कार वाली मनुष्य आत्मा हो मुझे सर्व के साथ सदा शुभ भावना, शुभकामना के साथ मधुर व्यवहार की महारास करना है।
सर्व के सहयोग से सुखमय संसार
श्री कृष्णा द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने का दृश्य सर्व के सहयोग से सुखमय संसार अर्थात सर्व शक्तिमान जगत नियंता ने स्वयं सभी की अंगुली लगाकर गोवर्धन पर्वत उठाया जो कि उनके विनम्रता की पहचान है।
भगवान को प्रेम की डोर में बांधा
मईया यशोदा द्वारा श्री कृष्ण जी को रस्सी से बांधने का दृश्य सभी को भाव विभोर कर रहा है, असीम शक्ति जगत नियंता को मईया यशोदा ने अपने पुत्र के रूप में स्नेह की डोर से बांधा, अर्थात हम सभी भगवान को विभिन्न संबंधों द्वारा स्नेह से बांध सकते हैं और स्वयं जगत नियंता स्नेह की डोर में बंधने के लिए सदैव तत्पर रहते है।
मैं पन मिथ्या अभिमान को दूर करता बर्बरीक, श्री कृष्ण, पांडव संवाद
झांकी के अंत में महाभारत युद्ध के पश्चात श्री कृष्ण द्वारा पांडवों के मिथ्या अभिमान को सम्पूर्ण महाभारत युद्ध को तटस्थ होकर साक्षी भाव से देखने वाले बर्बरीक के समक्ष दूर करने का अति मनोरम शिक्षाप्रद दृश्य जो वर्तमान परिपेक्ष्य में अभिमान वश विभिन्न स्वभाव, संस्कारों द्वारा संबंधों के टकराव में आ जाते हैं।